2025 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 429.6 पीपीएम तक पहुंचेगा | जलवायु प्रभाव विश्लेषण

2025 में वायुमंडलीय CO2 नया रिकॉर्ड बनाएगा
जलवायु विज्ञान के लिए एक गंभीर मील का पत्थर, वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) स्तर मई 2025 में 429.6 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) तक पहुंचने का अनुमान है। यह स्तर 20 लाख वर्षों में सबसे अधिक है और यह ग्रह की पारिस्थितिकी प्रणालियों और मानव आबादी पर इसके प्रभाव को रेखांकित करता है।
मेट ऑफिस, यूके के अनुसार, 2025 में वार्षिक औसत CO2 सांद्रता 426.6 पीपीएम तक बढ़ने का अनुमान है, जो 2024 की तुलना में 2.26 पीपीएम की वृद्धि दर्शाता है। यह वृद्धि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) द्वारा 1.5°C पर वैश्विक तापमान सीमित करने के लिए निर्धारित सतत सीमा से बहुत अधिक है।
अब तक की सबसे तीव्र वार्षिक वृद्धि
हवाई में मौना लो ऑब्ज़र्वेटरी के डेटा से 2023 और 2024 के बीच CO2 सांद्रता में अब तक की सबसे तेज़ वार्षिक वृद्धि का पता चला, जिसमें स्तर 3.58 पीपीएम तक बढ़ गए। यह पूर्वानुमानित वृद्धि 2.84 पीपीएम से अधिक थी, जो उत्सर्जन में तेज़ी को दर्शाती है।
इस वृद्धि के प्रमुख कारण हैं:
- रिकॉर्ड-उच्च जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन: 2024 में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन 41.6 बिलियन टन तक पहुंच गया, जो 2023 के 40.6 बिलियन टन से अधिक है।
- प्राकृतिक सिंक द्वारा कार्बन को कम पकड़ना: उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई और गिरावट ने CO2 को अवशोषित करने की ग्रह की क्षमता को कम कर दिया।
- वनाग्नियों से भारी CO2 उत्सर्जन: अकेले 2023 में, वनाग्नियों ने 7.3 बिलियन टन CO2 उत्सर्जित किया, जैसा कि कॉपर्निकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस (CAMS) ने बताया।
CO2 स्तरों के बढ़ने का जलवायु पर प्रभाव
कार्बन डाइऑक्साइड एक गर्मी फँसाने वाली गैस के रूप में कार्य करती है, जो वैश्विक तापमान और चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि करती है। 2024 में, दुनिया ने अपना सबसे गर्म वर्ष अनुभव किया, जिसके विनाशकारी प्रभाव हुए:
- अत्यधिक गर्मी और सूखे ने पारिस्थितिकी प्रणालियों और मानव आजीविका को प्रभावित किया।
- गंभीर तूफान और बाढ़ ने लाखों लोगों को उनके घरों से विस्थापित कर दिया।
- भारत में, चरम मौसम की घटनाओं ने 3,200 लोगों की जान ले ली, जैसा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने बताया।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का अनुमान है कि 2025 तक वैश्विक तापमान बढ़ता रहेगा, जिससे यह सबसे गर्म वर्षों में से एक बन जाएगा।
1.5°C लक्ष्य को पाने की चुनौतियां
पेरिस समझौता 1.5°C तक वैश्विक तापमान को सीमित करने का लक्ष्य रखता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने की आवश्यकता है।
हालांकि, वर्तमान रुझान दिखाते हैं कि CO2 स्तर बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं। IPCC की सिफारिश है कि वायुमंडलीय CO2 की वृद्धि को 1.8 पीपीएम प्रति वर्ष तक धीमा किया जाए—जो वास्तविकता से बहुत दूर है।
मेट ऑफिस के प्रोफेसर रिचर्ड बेट्स ने कहा, “वैश्विक तापमान को रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के निर्माण को पूरी तरह से रोकने और उसके बाद कमी लाने की आवश्यकता है। उत्सर्जन में महत्वपूर्ण और तेज़ कटौती से 1.5°C लक्ष्य को पार करने से बचा जा सकता है, लेकिन इसके लिए त्वरित अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता है।”
क्या किया जा सकता है?
उत्सर्जन बढ़ने को रोकने के लिए तत्काल अंतरराष्ट्रीय कदम उठाने की आवश्यकता है:
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाएं: सौर, पवन, और जलविद्युत जीवाश्म ईंधन की जगह तेज़ी से ले सकते हैं।
- कार्बन सिंक को मजबूत करें: वनीकरण और स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं से कार्बन अवशोषण को बढ़ावा देना जरूरी है।
- वैश्विक नीतियों को अपनाएं: देशों को महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए और उत्सर्जन पर सख्त नियम लागू करने चाहिए।
निष्कर्ष
मई 2025 में वायुमंडलीय CO2 स्तरों के 429.6 पीपीएम तक पहुंचने का पूर्वानुमान इस बात का कड़ा संकेत है कि सामूहिक कार्रवाई की सख्त जरूरत है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बढ़ने के साथ, उत्सर्जन को कम करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए ग्रह को संरक्षित करने के प्रयासों को तेज़ करना आवश्यक है।
आइए आज ही कार्रवाई करें। परिवर्तन का समय भविष्य में नहीं, बल्कि आज है।
जलवायु से संबंधित अद्यतन और जानकारी के लिए अग्रणी संसाधनों का अनुसरण करें और स्थिरता को बढ़ावा देने वाली पहलों में योगदान दें। मिलकर हम इस संकट का सामना कर सकते हैं।