भारत, हिमालय और तटीय राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

Q: 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्यों पर इसका क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
जलवायु परिवर्तन, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण होने वाली वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) का प्रभाव है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार, वैश्विक तापमान में 2–4°C तक की वृद्धि हो सकती है जो विनाशकारी परिणाम ला सकती है। भारत एक उष्णकटिबंधीय देश होने के कारण जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर सकता है।
भारत पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
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तापमान में वृद्धि के कारण भीषण गर्मी और लू की घटनाएं बढ़ेंगी। पहले ही पिछले 3 वर्षों में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लू से 2000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
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जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अत्यधिक गीला और अत्यधिक अनिश्चित हो जाएगा। रिपोर्टों के अनुसार, जो मानसून एक बार 100 वर्षों में आता है, वह अब हर 10 वर्षों में आ सकता है।
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सूखा और बाढ़ की घटनाएं अधिक बार होंगी। वर्षा का वितरण अत्यंत असमान हो जाएगा और क्लाउड बर्स्ट (बादल फटना) जैसी घटनाएं बढ़ेंगी, जिससे भारी नुकसान होगा।
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फसल उत्पादकता पर असर होगा। तापमान में वृद्धि सीधे फसलों की उपज को घटा सकती है। साथ ही, कीट और रोग बढ़ने से फसलों को अधिक नुकसान होगा।
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जलजनित (waterborne) और कीटजनित (vector-borne) बीमारियां बढ़ सकती हैं, जैसा कि TERI की रिपोर्ट में बताया गया है।
हिमालयी राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
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IPCC (Inter-Governmental Panel on Climate Change) के अनुसार, हिमालयी ग्लेशियर विश्व में सबसे तेजी से पिघल रहे हैं, और यदि तापमान ऊपरी अनुमान के अनुसार बढ़ा तो अगले 50-100 वर्षों में हिमालय ग्लेशियरविहीन हो सकता है।
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हिम तेंदुए जैसे दुर्लभ प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
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पूर्वी हिमालयी राज्य अत्यधिक मानसून और बाढ़ के शिकार बन सकते हैं।
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गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र के तटवर्ती क्षेत्रों में लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित होगी।
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हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत नाज़ुक है और जलवायु परिवर्तन से इसमें गंभीर बदलाव आ सकते हैं।
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ग्लेशियरों से पोषित नदियाँ (जैसे गंगा, सिंधु) केवल मानसून वर्षा पर निर्भर हो जाएंगी, जिससे कृषि, वन, जैव विविधता और मानव जीवन में व्यापक बदलाव होंगे।
तटीय राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
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मुंबई और कोलकाता जैसे घनी आबादी वाले तटीय शहर जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
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मुंबई में हर साल जलभराव और बाढ़ की घटनाएं होती हैं, जैसे 26 जुलाई 2005 की बाढ़, जिसकी आवृत्ति बढ़ सकती है।
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समुद्र स्तर में वृद्धि और तूफानी लहरें (storm surge) तटीय क्षेत्रों में लवणता (salinity) बढ़ा सकती हैं, जिससे कृषि, पीने का पानी और भूजल प्रभावित होगा।
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कुछ तटीय शहरों का पूरी तरह डूब जाना भी संभव है।
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समुद्री सतह का तापमान और एसिडिटी (अम्लता) बढ़ने से कोरल रीफ नष्ट होंगे, जिससे मछली पालन और तटीय आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन की चुनौती का समाधान अकेले किसी देश के लिए संभव नहीं है। इसके लिए विश्व को मिलकर सक्रिय और त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है।