भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में लंबे समय से उग्रवाद फैला हुआ है। इस क्षेत्र में सशस्त्र उग्रवाद के जीवित रहने के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करें।

उत्तर:
एक लंबे समय तक उत्तर-पूर्वी क्षेत्र ने बफर (Buffer) क्षेत्र की भूमिका निभाई है। यह क्षेत्र विकास से वंचित रहा है। इस पृष्ठभूमि में, हमें इस क्षेत्र में सशस्त्र उग्रवाद के बने रहने के विभिन्न जटिल कारणों का विश्लेषण करना चाहिए।
प्रमुख कारणों का विश्लेषण:
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विकास की कमी इस क्षेत्र में उग्रवाद के बने रहने का एक प्रमुख कारण है। विकास न होने के कारण युवाओं और अन्य वर्गों के पास आर्थिक अवसर बहुत सीमित थे। इस कारण वे विभिन्न उग्रवादी संगठनों के आसान शिकार बन गए, जिन्होंने उन्हें प्रशिक्षण देकर उगाही (extortion) और सशस्त्र उग्रवाद के लिए इस्तेमाल किया।
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दूरस्थता और संकीर्ण भूमि संपर्क एक और बड़ी बाधा है, जो आज भी मौजूद है। स्वतंत्रता से पहले, यह क्षेत्र मुख्य भूमि से वर्तमान बांग्लादेश के ज़रिए जुड़ा हुआ था। लेकिन अब यह केवल एक संकीर्ण 23 किलोमीटर चौड़े सिलीगुड़ी कॉरिडोर के ज़रिए भारत से जुड़ा हुआ है। यह विकास एजेंसियों के लिए इस क्षेत्र को प्रभावी रूप से विकसित करने में एक बड़ी अड़चन बनाता है।
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सात बहनों (7 Sister States) के बीच भी आंतरिक संपर्क की स्थिति बहुत खराब है। यह क्षेत्र पहाड़ी भू-भागों से युक्त है और यहाँ रेल और सड़क संपर्क की उपलब्धता भी सीमित है। इस कारण भारतीय सेना और पुलिस बलों के लिए उग्रवादियों को निष्क्रिय करना बहुत कठिन होता है, जिससे वे फलते-फूलते रहे हैं।
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उत्तर-पूर्व क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जातीय संघर्ष स्वाभाविक रूप से मौजूद हैं, जो उग्रवाद के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं। इसलिए ये संघर्ष बार-बार उभर कर सामने आते हैं। यहाँ कई जनजातीय और जातीय समूह हैं जिनके हित आपस में टकराते हैं, जैसे—नागा, मिजो, कुकी, बोडो। इनके बीच लगातार संघर्ष चलते रहते हैं, जो निरंतर उग्रवाद को जन्म देते हैं।
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एक और बड़ा तनाव बांग्लादेशियों के प्रवास के कारण उत्पन्न होता है, जो विशेष रूप से असम क्षेत्र में एक गंभीर समस्या है।
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उग्रवादी समूहों की अधिक संख्या भी उन्हें नियंत्रित करने में कठिनाई पैदा करती है। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में 30 से 50 उग्रवादी समूह हैं, जिनमें से लगभग 20 समूह किसी भी समय सक्रिय रहते हैं।
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कुछ अलगाववादी तत्वों को बाहरी समर्थन भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र की लंबी और असुरक्षित अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ भी उग्रवाद को नियंत्रित करने में कठिनाई पैदा करती हैं, जिसके चलते ये लंबे समय से जारी हैं।
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प्रशासनिक उदासीनता भी एक बड़ा कारण है, जो सशस्त्र उग्रवाद को बढ़ावा देती है। कठोर पुलिसिंग पद्धतियों, जैसे कि आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर) एक्ट (AFSPA) जैसे कानूनों का प्रयोग, स्थानीय जनता और विकास एजेंसियों के बीच विश्वास की कमी पैदा करता है। इस कारण, सशस्त्र उग्रवादी समूहों को स्थानीय समर्थन मिल जाता है।
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विकास की कमी केवल व्यापार और आर्थिक अवसरों को ही बाधित नहीं कर रही है, बल्कि उत्तर-पूर्व भारत के भारतीय नागरिकों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रही है। यहाँ बहुत कम मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य स्नातक शिक्षा के लिए भी उच्च शिक्षा संस्थान नहीं हैं। इससे समाज में अलगाव की भावना (feeling of alienation) बढ़ती है।
लेकिन अब उत्तर-पूर्व भारत के विकास में रुचि फिर से जागृत हुई है, और जल्द ही दोहरे रणनीति—विकास और सख्त कानून एवं व्यवस्था—के ज़रिए सशस्त्र उग्रवाद पर प्रभावी अंकुश देखने को मिलेगा।