I. आंदोलन की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि:
- टैगोर का चित्रकला की ओर झुकाव उनके जीवन के उत्तरार्ध (60 वर्ष की आयु के बाद) में बढ़ा।
- उन्होंने कला को "आत्मा की भाषा" माना, जो शब्दों से अधिक सशक्त होती है।
II. मुख्य विशेषताएँ:
- आकृति और रंगों का प्रयोग – लहरदार रेखाएँ, गहरे रंग और अस्पष्ट आकृतियाँ।
- प्रतीकात्मकता और अमूर्तता (Abstraction) – पारंपरिक यथार्थवाद से भिन्न।
- मनोवैज्ञानिक गहराई – उनके चित्र आत्मचिंतन और अनुभवों से उत्पन्न होते हैं।
- रचनात्मक स्वतंत्रता – पश्चिमी तकनीक को अपनाने की बजाय मौलिक दृष्टिकोण।
III. आलोचना और प्रभाव:
- टैगोर का कहना था कि "कलाकार को गुलाम नहीं बनना चाहिए किसी नियम या परंपरा का।"
- उन्होंने शांतिनिकेतन में कलाभवन की स्थापना कर नव्य कला को संस्थागत आधार दिया।
- टैगोर की कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली (1930 में पेरिस प्रदर्शनी)।
IV. निष्कर्ष:
रवीन्द्रनाथ का नव्य-कला आंदोलन आत्म-खोज, मौलिकता और सांस्कृतिक स्वराज का प्रतीक था, जिसने भारतीय आधुनिक कला को एक नई दिशा दी।
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